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कर्म बनाम भाग्य: कौन है असली राजा?

हिंदू दर्शन में कहा गया है — "जैसा करोगे, वैसा भरोगे।" यही विचार "करम प्रदान" (कर्म प्रधान) की जड़ में है। जीवन में जो कुछ भी हमारे साथ घटित होता है, वह हमारे कर्मों का ही फल होता है। चाहे वह सुख हो या दुख, सफलता हो या असफलता — हर चीज़ हमारे अपने ही कर्मों से उत्पन्न होती है।

क्या है करम प्रदान?

"करम प्रदान" का सीधा अर्थ है कि हमारे कर्म ही हमारे जीवन को संचालित करते हैं। यह विचार न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी तर्कसंगत है। अगर हम मेहनत करेंगे, ईमानदारी से प्रयास करेंगे, तो सफलता अवश्य मिलेगी। वहीं अगर हम छल, कपट और आलस्य को अपनाएंगे, तो उसका प्रतिफल भी वैसा ही होगा।

भाग्य बनता है कर्म से

कई लोग कहते हैं कि "भाग्य में जो लिखा है, वही मिलेगा।" लेकिन अगर भाग्य ही सब कुछ तय करता, तो मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं होती। सच तो यह है कि भाग्य भी हमारे कर्मों का ही परिणाम है। अच्छे कर्म अच्छे भाग्य को जन्म देते हैं।

कर्म का चक्र

कर्म एक चक्र की तरह है — जो हम भेजते हैं, वही हमारे पास लौटकर आता है। यदि हम प्रेम, सहायता, और सत्य का प्रचार करेंगे, तो वही चीज़ें हमारे जीवन में वापस आएंगी। यह प्रकृति का अटल नियम है।

जीवन में करम प्रधानता क्यों जरूरी है?

1. स्वावलंबन सिखाता है:हम दूसरों पर निर्भर नहीं रहते।

2. नैतिकता को बढ़ावा देता है: अच्छे कर्मों से समाज का भला होता है।

3. आत्मबल बढ़ाता है:कर्म पर विश्वास हमें आत्मविश्वास देता है।

4. धैर्य और संतुलन लाता है:हम परिणामों की चिंता किए बिना अपना कर्तव्य निभाते हैं।

करम प्रदान जीवन का मूल सिद्धांत है। जब हम यह समझ लेते हैं कि हमारे कर्म ही हमारा भविष्य गढ़ते हैं, तब हम अपने हर कार्य को सोच-समझकर करते हैं। यही सोच हमें एक अच्छा इंसान और समाज का जिम्मेदार नागरिक बनाती है।

"कर्म करो, फल की चिंता मत करो" — श्रीमद्भगवद्गीता का यह उपदेश हर

 युग में प्रासंगिक रहेगा।

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