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बेटा

बेटा का फ़र्ज़: एक बेटे की ज़िम्मेदारियाँ ...

हर इंसान की ज़िन्दगी में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो जन्म के साथ ही जुड़ जाते हैं – माँ, बाप, भाई, बहन। इन्हीं रिश्तों में एक अहम रिश्ता है "बेटे" का। बेटा केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है, एक उम्मीद है, और कई बार एक परिवार की रीढ़ भी।

बेटा बनना एक सौभाग्य है

बेटा होना कोई उपलब्धि नहीं है, बल्कि एक सौभाग्य है – लेकिन उस सौभाग्य को सार्थक बनाना हर बेटे का फ़र्ज़ है। माँ-बाप ने जीवन भर जो त्याग और संघर्ष किया है, उसका सम्मान करना और उनके बुज़ुर्ग होते समय उनका सहारा बनना बेटे का सबसे पहला कर्तव्य है।

बेटा सिर्फ कमाने वाला नहीं होता

कई बार समाज बेटे को सिर्फ एक "कमाई का ज़रिया" मानता है, जो घर चलाए, खर्च उठाए और बुज़ुर्ग माँ-बाप की देखभाल करे। लेकिन एक बेटा केवल पैसे कमाने वाला नहीं होता – वह भावनाओं का केंद्र, परंपराओं का वाहक, और रिश्तों को जोड़ने वाला एक मजबूत धागा होता है।

बेटा तब भी बेटा है, जब...

- वह घर से दूर नौकरी कर रहा हो लेकिन माँ को रोज़ फोन करता है।

- वह खुद कठिनाइयों में हो लेकिन पिता के इलाज में कसर नहीं छोड़ता।

- वह बहन की शादी में खुद से पहले उसके सपनों को रखता है।

- वह माता-पिता के बुढ़ापे में उनका सबसे बड़ा सहारा बनता है।

बेटा होना आसान नहीं, लेकिन नामुमकिन भी नहीं

आज के समय में जब जीवन की रफ्तार तेज़ हो गई है, तब एक अच्छा बेटा वही है जो अपने परिवार से जुड़ा रहता है, माँ-बाप की भावनाओं को समझता है, और हर परिस्थिति में उन्हें अकेला महसूस नहीं होने देता।

बेटा सिर्फ जन्म से नहीं, कर्म से बनता है

हर बेटा अपने कर्मों से अपने माता-पिता का गौरव बढ़ा सकता है। ज़रूरी नहीं कि आप अमीर हों या कोई बड़ा पद हो – अगर आप अपने माँ-बाप की इज्ज़त करते हैं, उनकी देखभाल करते हैं, उनके साथ समय बिताते हैं, तो आप एक सच्चे बेटे हैं।

बेटा होना सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक वादा है – कि माँ के आँचल और बाप की मेहनत को बेकार नहीं जाने दूंगा। अगर हम इस वादे को समझ जाएं और निभाएं, तो समाज में रिश्तों की नींव और भी मजबूत हो जाएगी।

"बेटा वही नहीं जो जन्म ले, बेटा वह है जो माँ-बाप के बुढ़ा

पे में भी उनके साथ खड़ा रहे।"

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