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एक आँसू... माँ का कलेजा निकाल आया

माँ के दर्द, त्याग और निःस्वार्थ प्रेम को शब्दों में पिरोता है।

एक आँसू... माँ का कलेजा निकाल आया 

कहते हैं, माँ सब जानती है — पर कोई ये नहीं जानता कि माँ कब टूटती है। वह औरों के लिए चट्टान होती है, मगर जब उसका दिल रोता है, तो आँसू नहीं बहते... वो तो बस एक आँसू होता है — और वही उसकी पूरी दुनिया को हिला देने के लिए काफी होता है।

माँ अक्सर मुस्कुराती रहती है, सुबह की चाय से लेकर रात के आखिरी बर्तन तक। हमें लगता है, उसे थकान नहीं होती, चिंता नहीं होती, दर्द नहीं होता। पर एक दिन, जब माँ की आँख से एक आँसू गिरता है — बिना बोले, बिना कुछ कहे — तब समझ आता है कि उस एक आँसू के पीछे कितने सालों की चुप्पी थी।

माँ का कलेजा क्यों निकल आया?

उस दिन कुछ खास नहीं हुआ था। बस वही रोज़ की ज़िंदगी। लेकिन बेटे की एक बात, बहू की एक बेरुखी, या शायद किसी अपने की उपेक्षा ने माँ के भीतर कुछ तोड़ दिया। और जब उसने चुपचाप आँसू पोंछा, तो किसी ने ध्यान भी नहीं दिया। लेकिन जो नहीं देखा गया, वही सबसे बड़ा तूफ़ान था।

उस एक आँसू में था:

. अधूरा सपना

. अनकहा दर्द

. त्याग की पराकाष्ठा

. और एक माँ की टूटी उम्मीद

उसे कुछ चाहिए नहीं था — बस थोड़ी सी जगह, थोड़ी सी इज़्ज़त, थोड़ा सा अपनापन।

माँ तो माँ होती है...

उसका प्यार बिना शर्त होता है, मगर उसका दर्द बेआवाज़ होता है। जब वो रोती है, तो आसमान नहीं फटता, लेकिन उसका कलेजा ज़रूर चीर जाता है।

वो आँसू, जो आपने देखा और नज़रअंदाज़ कर दिया — वही आँसू, किसी माँ के कलेजे को चीर गया।

क्या आपने कभी माँ की आँखों में झाँका?

अगर झाँका होता, तो वहाँ सिर्फ़ आँसू नहीं — बलिदानों की एक पूरी किताब मिलती।

अगर कभी माँ की आँखों में नमी दिखे, तो चुप मत रहिए। उसका हाथ पकड़िए, उसे गले लगाइए। क्योंकि हो सकता है, उसका वो एक आँसू ही उसकी आखिरी पुकार हो... एक ऐसा आँसू, जो माँ का कलेजा निकाल लाता है।

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