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इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं, जितना पानी पीओ, प्यास और बढ़ती ...

 

इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं – जितना पानी पीओ, प्यास और बढ़ती है

“इंसान की इच्छाएं उस आग की तरह हैं जिसे जितना ईंधन दो, वो और भड़कती है। और ये आग तब तक जलती रहती है जब तक इंसान खुद ही राख न हो जाए।”

हम सबने कभी न कभी ये महसूस किया है कि जब एक सपना पूरा होता है, तो उसके पीछे कोई दूसरा सपना सिर उठाने लगता है। जब एक मंज़िल मिलती है, तो दिल दूसरी मंज़िल की ओर भागने लगता है। यही है इच्छाओं की दुनिया – अंतहीन, अनसुलझी और कभी न भरने वाली।

इच्छाएं – एक न खत्म होने वाला सफ़र

इच्छाएं जीवन को दिशा देती हैं। वे हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। लेकिन यही इच्छाएं जब बेकाबू हो जाएं, तो जीवन को थका देने वाली दौड़ में बदल देती हैं।

आपने कभी गौर किया है?

. एक मोबाइल लिया, थोड़े समय में नया मॉडल अच्छा लगने लगा।

. एक अच्छा घर लिया, पर अब बड़ी कोठी का सपना बनने लगा।

. अच्छी नौकरी मिली, अब विदेश जाने की लालसा जाग गई।

जैसे-जैसे हम कुछ हासिल करते हैं, हमारी 'ज़रूरतें' और 'चाहतें' भी उसके साथ बढ़ती जाती हैं। ठीक वैसे ही जैसे रेगिस्तान में कोई प्यासा आदमी दूर से पानी देखे – पास जाने पर पता चलता है कि वह तो मृगतृष्णा थी।

क्यों नहीं बुझती ये प्यास?

इस सवाल का जवाब बड़ा सरल, लेकिन गहरा है – क्योंकि हमारी दृष्टि बाहर की ओर है, भीतर की ओर नहीं।

हम सोचते हैं कि नया फोन, नई गाड़ी, नई पहचान या नई चीज़ें हमें ख़ुशी देंगी। और कुछ समय तक देती भी हैं। लेकिन वो खुशी स्थायी नहीं होती। हम बहुत जल्दी उस चीज़ के आदी हो जाते हैं और फिर किसी और चीज़ की तलाश शुरू हो जाती है।

ये इंसानी मन की चालाकी है – वो कभी नहीं चाहता कि हम संतुष्ट हों।

तो क्या इच्छाएं रखना गलत है?

बिलकुल नहीं।

इच्छाएं होना स्वाभाविक है। अगर कोई इच्छा नहीं होगी तो जीवन ठहर जाएगा। पर असली बात है – इच्छाओं का स्वामी बनना, उनका ग़ुलाम नहीं।

इच्छाएं हमें चलाएं, उससे बेहतर है कि हम इच्छाओं को चलाएं।

जब इच्छाएं सीमित हों, विवेकपूर्ण हों और संतुलित हों – तभी वे सुख देती हैं। वरना वे हमें कभी चैन से जीने नहीं देतीं।

शांति की ओर पहला कदम: संतोष

जब आप यह स्वीकार कर लेते हैं कि "मेरे पास जो है, वही काफ़ी है", तब जीवन में एक अनोखी शांति उतरती है।

 

1. हर दिन कृतज्ञता – सुबह उठकर तीन चीज़ों के लिए धन्यवाद करें जो आपके पास हैं।

2. अपने पास की खुशी पहचानें – क्या आपको अपने परिवार, सेहत, या दोस्तों में सच्चा सुख नहीं मिलता?

3. तुलना मत करें – सोशल मीडिया पर दूसरों की दिखावटी ज़िंदगी देखकर खुद को कम मत समझें।

4. भीतर झांकें – ध्यान, योग या आत्मचिंतन करें। आपको खुद के भीतर वो शांति मिलेगी जिसे बाहर ढूंढ़ते रहे।

जीवन का सार: भीतर की प्यास बुझाना

“जितना पानी पीओ, प्यास और बढ़ती है”को वाक्य सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि गहरे अनुभव का निचोड़ है।

जब तक हम समझ नहीं लेते कि बाहर की चीज़ों से असली संतोष नहीं मिलेगा, तब तक हम इस दौड़ में थकते रहेंगे।

असली सुख वो है, जो आपके मन की शांति में है। और वो शांति तब मिलती है, जब आप यह मान लेते हैं कि –

“जो मेरे पास है, वही मेरे लिए सबसे सही है।”

इच्छाएं जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन जीवन का सार नहीं।

जो भीतर की प्यास बुझा ले, वही सच्चा ज्ञानी है।

साधन बढ़ाओ, लेकिन साथ में संतोष भी बढ़ाओ। तभी जीवन में सुख और शांति दोनों आएंगे।

“इच्छाएं एक जलते दीपक की तरह हैं – अगर हर बार उसमें तेल डालते जाओगे, तो वह रोशनी नहीं देगा, आग बन जाएगा। संतुलन जरूरी है।”

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