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कोई मेरी तक़दीर लिख दे... लेकिन वो लिखने वाला कहाँ चला गया?

 

 कोई मेरी तक़दीर लिख दे...

लेकिन वो लिखने वाला कहाँ चला गया?

कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे जीवन की सारी राहें धुंधली हो गई हैं।

हर मोड़ पर सवाल खड़े हैं, और जवाब कहीं नहीं।

दिल कहता है —

"काश कोई मेरी तक़दीर फिर से लिख दे,

कोई ऐसा जो समझ सके मेरा दर्द...

लेकिन वो लिखने वाला, अब दिखाई नहीं देता।

कहाँ चला गया वो?"

 

जब सब कुछ थम-सा जाता है...

 

हर इंसान की ज़िंदगी में एक ऐसा वक़्त आता है,

जब हालात बेमानी लगते हैं,

दुआएँ बेअसर लगती हैं,

और तक़दीर जैसे खामोश हो जाती है।

 

हम सोचते हैं —

क्या मेरी कहानी में कोई सवेरा लिखा ही नहीं गया?

 क्या मेरी क़िस्मत अधूरी ही रह जाएगी?

 

लेकिन सच ये है...

तक़दीर सिर्फ़ लिखी नहीं जाती — बनाई भी जाती है।

वो "कोई" जो हमारी तक़दीर लिखने वाला था,

शायद वो हमें खुद की ताक़त पहचानने का वक़्त दे रहा है।

हो सकता है वो कहीं गया ही ना हो,

बल्कि हमारे भीतर ही बैठा हो —

हमारी उम्मीद, हमारी मेहनत, और हमारे फैसलों के रूप में।

हम अक्सर दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वे हमें रास्ता दिखाएँ,

पर असली रौशनी हमारे अंदर होती है।

  तो अब क़लम उठाइए...

अगर कोई और आपकी तक़दीर नहीं लिख रहा,

तो डरिए मत —

 क़लम आपके हाथ में है।

. अपने आँसुओं को स्याही बना लीजिए,

. अपने संघर्षों को शब्द बना लीजिए,

. और फिर से लिख डालिए अपनी नई कहानी —

  एक ऐसी कहानी, जिसमें न हार है, न शिकवा।

  बस आप हैं, आपकी मेहनत है, और एक नई शुरुआत।

 

   याद रखिए...

 

. "रात चाहे जितनी भी अंधेरी हो,

. अगर दिल में उजाला हो —

. तो हर तक़दीर रोशन की जा सकती है।"

 

आप क्या सोचते हैं?

क्या आप भी कभी ऐसा महसूस करते हैं कि आपकी तक़दीर रुक गई है?

क्या आपने कभी सोचा है कि आप ही उसके लेखक बन सकते हैं?

कमेंट करें, साझा करें

, और किसी को उम्मीद दीजिए।

शायद आपकी एक बात किसी का अंधेरा चीर दे।

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