ऑक्सीजन की कीमत पहले पता चली... लेकिन अब सब भूल गए!

अब सब भूल गए! कोविड-19 का वो समय याद है? जब हर तरफ सिर्फ एक चीज़ की मांग थी — ऑक्सीजन। लोग सिलेंडर के लिए लाइन में खड़े थे, अस्पतालों में हाहाकार मचा था। तब सबको समझ में आया था कि ऑक्सीजन सिर्फ हवा नहीं, ज़िंदगी है।
लेकिन आज?
जैसे-जैसे वक़्त बीत गया, वैसे-वैसे सब भूल गए कि उस दौर में किस चीज़ ने हमें जिंदा रखा था। अब फिर से वही रूटीन शुरू हो गया है — चेहरा चमकाने की भागदौड़, सोशल मीडिया पर स्टोरीज़, पैसे और पोज़।
कोई ये नहीं सोच रहा कि जिस चमकते चेहरे और साफ़ आवाज़ से वो वीडियो बना रहे हैं, वो भी ऑक्सीजन की देन है।
•• सोचो — सांसें मिल रही हैं किससे?
• क्या मोबाइल से मिल रही हैं?
• क्या इंस्टाग्राम या यूट्यूब से मिल रही हैं?
• नहीं! हमें जीवनदायिनी सांसें मिलती हैं पेड़ों से।
फिर भी, मोबाइल तो सबके पास है लेकिन घर के आस-पास एक भी पेड़ नहीं है।
••। अपने बच्चे को भविष्य बनाने के लिए क्या कभी सोचा? लेकिन नहीं।
"कभी सोचा भविष्य मे हमारा बच्चा के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन मिल जाएगी?"
जब पेड़ नहीं होंगे, तो हवा नहीं होगी। तो आप की क्या जिम्मेदारी होगी ।
••। पेड़ लगाने की जिम्मेदारी किसकी है?
सरकार की? पर्यावरण प्रेमियों की? या सिर्फ NGO वालों की?
•• नहीं! यह जिम्मेदारी हमारी है — आपकी और मेरी।
अगर हम ऑक्सीजन ले रहे हैं, तो पेड़ लगाने का कर्ज भी चुकाना होगा। वरना ये जीवन सिर्फ उधारी की सांस बनकर रह जाएगा।
•• सिर्फ बातें नहीं... अब एक्शन चाहिए
* एक पेड़ लगाइए।
• अपने बच्चों को सिखाइए कि ऑक्सीजन क्या होती है।
• हर त्योहार पर एक पौधा लगाइए।
• मोबाइल में जितने ऐप हैं, उतने पेड़ भी लगाइए।
••एक आख़िरी बात — अगर जागे हो, तो जगाओ भी
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हो सकता है आप पेड़ न लगा पाएं, लेकिन आपकी एक पोस्ट किसी और को प्रेरित कर दे।
शायद वही पेड़ कल आपके, आपके परि
वार और किसी अजनबी की सांसों का सहारा बन जाए।"
