तू थक गया? सोच उस माँ-बाप के बारे में, जो थक कर भी तुझसे मुस्कुरा के कहते हैं — 'बेटा पढ़ ले, सब ठीक हो जाएगा।

जो थक कर भी तुझसे मुस्कुरा के कहते हैं — 'बेटा पढ़ ले, सब ठीक हो जाएगा।'"
थक गया ना?
पढ़ते-पढ़ते थक गया?
लगता है अब और नहीं हो पाएगा?
हर दिन एक जैसा लगता है – वही किताबें, वही क्लास, वही प्रेशर।
तू सोचता है – “क्या सच में ये सब मेहनत किसी दिन काम आएगी?”
√ सवाल बहुत हैं, पर जवाब सिर्फ एक है – तेरे माँ-बाप।
•• कभी माँ के चेहरे को गौर से देखा है?
थोड़ा थकी हुई लगती है, ना?
पर फिर भी सुबह सबसे पहले उठती है,
तेरे लिए टिफ़िन बनाती है, कपड़े धोती है,
और जब तू स्कूल/कोचिंग से लौटता है तो दरवाज़े पर मुस्कुरा कर खड़ी मिलती है।
उसे भी थकान होती है,
कभी पेट दर्द, कभी सिरदर्द,
पर जब तू उदास होता है तो वो सब छोड़ कर कहती है —
•• "बेटा पढ़ ले… सब ठीक हो जाएगा।"
•• और वो बाप… जो बोलता नहीं ज़्यादा, पर सब सह लेता है।
तेरे जूते फट जाएँ, तो अगले दिन ले आता है नए जूते।
पर उसके अपने जूते? शायद पिछले 2 साल से वही पहन रहा है।
कभी पर्स में पैसे कम हों,
तो खुद के लिए दवा भी नहीं खरीदता,
पर तेरी कोचिंग की फीस समय पर भर देता है।
तू कभी नहीं पूछता —
"पापा, आप कैसे हो?"
और वो भी कभी शिकायत नहीं करता,
बस हर बार यही कहता है —
"बेटा पढ़ ले, सब ठीक हो जाएगा।"
अब बात सीधी है — थकान तुझे नहीं, उन्हें है।
• पर वो रुकते नहीं।
• हारते नहीं।
• बस तुझसे जीत की उम्मीद रखते हैं।
•• उनकी नींदें तुझ पर क़ुर्बान हो गईं,
•• उनके सपने तेरे सपनों में खो गए।
और तू कहता है —
"थक गया हूँ?"
•• ये जो पढ़ाई है ना… ये सिर्फ एक डिग्री नहीं है।
ये माँ की मन्नत है,
पिता की मेहनत है,
तेरे पूरे परिवार की उम्मीद है।
जब तू एक एग्ज़ाम में फेल होता है,
तो वो दुखी होते हैं —
लेकिन कभी कहते नहीं… क्योंकि वो जानते हैं,
"बेटा फिर से कोशिश करेगा।"
•• अब फैसला तेरा है…
थोड़ा थक कर बैठ जाना है,
या माँ-बाप की अधूरी नींदों को चैन में बदलना है?
• "सपने पूरे करने के लिए नींद नहीं,
• माँ-बाप की आँखों की नमी पढ़नी पड़ती है।"
•• आख़िर में एक बात समझ ले:
• "जिस दिन तू सफल होगा,
• उसी दिन माँ चैन से सो पाएगी…
• और पिता की कमर थोड़ी सी सीधी होगी।
•• अब भी थका हुआ महसूस कर रहा है? या
फिर उठकर कुछ बड़ा करने का मन है?
माँ-बाप ने कभी हार नहीं मानी…
अब तेरी बारी है।
